जब भीतर-बाहर मृत्यु दिखती है, तब ही व्यक्ति धार्मिक होता है || आचार्य प्रशांत, आजगर गीता पर (2020)

2024-07-03 0

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वीडियो जानकारी: अद्वैत बोध शिविर, 25.04.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
ऐसा समझना चाहिए, पूर्वकृत कर्मानुसार बने हुए स्‍वभाव से ही प्राणियों की वर्तमान प्रवृत्तियाँ प्रकट हुई हैं, अत: समस्‍त प्रजा स्‍वभाव में ही तत्‍पर है, उनका दूसरा कोई आश्रय नहीं है।
इस रहस्‍य को समझकर मनुष्‍य को किसी भी परिस्थिति में संतुष्‍ट नहीं होना चाहिए।
असुरराज! पृथ्‍वी पर भी जितने स्‍थावर–जंगम प्राणी हैं, उन सबकी मृत्‍यु मुझे स्‍पष्‍ट दिखाई दे रही है।
आजगर गीता (श्लोक-11, 15)

~ मृत्यु को सदा कैसे याद रखें?
~ मृत्यु किस बात का सूचक है?
~ व्यक्ति कब धार्मिक कहलाता है?

संगीत: मिलिंद दाते
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